भारत के राष्ट्रपति के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है

भारत के राष्ट्रपति के बारे में

भारत के राष्ट्रपति के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है

•राष्ट्रपति हमारे देश के संघीय कार्यपालिका का वैधानिक मुखिया होता है जबकि कार्यपालिका का वास्तविक मुख्य प्रधानमंत्री होता है। हमारे देश में राष्ट्रपति की स्थिति बहुत कुछ मायनों में ब्रिटिश सम्राट के समान है।

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राष्ट्रपति भारत का राज्य प्रमुख होता है। वह भारत का प्रथम नागरिक है और राष्ट्र की एकता अखंडता व सशक्तता का प्रतीक है। संविधान के अनुच्छेद 53 के अनुसार संघ सरकार की कार्यपालिका संबंधी समस्त शक्तियां भारत के राष्ट्रपति में निहित है। सघींय सरकार के सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किए जाते है। वह देश की रक्षा सेनाओं का सर्वोच्च सेनापति होता है।

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राष्ट्रपति पद की योग्यता:-संविधान के अनुच्छेद 58 के अनुसार राष्ट्रपति की निम्न योग्यताएं होनी आवश्यक है।

•वह भारत का नागरिक हो एवं 35 वर्ष की आयु पूर्ण कर चुका हो। वह लोकसभा का सदस्य बनने की योग्यता रखता हुआ हो

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•वह संघ/राज्य सरकार या किसी स्थानीय स्वशासी संस्था या सार्वजनिक अधिकरण में लाभ के पद पर नहीं हो।

राष्ट्रपति पद के लिए शर्तें (अनुच्छेद 59):-

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•राष्ट्रपति संसद की किसी सदन का या किसी राज्य के विधान मंडल के किसी सदन का सदस्य नहीं होगा और यदि है तो उसकी राष्ट्रपति पद की पद ग्रहण की तारीख से उच्च सदन से इसकी सदस्यता स्वत: समाप्त समझी जाएगी।

कार्यकाल

•राष्ट्रपति अपने पद ग्रहण की तारीख से 5 वर्ष की अवधि तक पद धारण कर सकेगा तथा पुनः नियुक्ति का पात्र होगा।

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•राष्ट्रपति अपने पदावधि समाप्त हो जाने पर भी नए राष्ट्रपति के पद ग्रहण करने तक पद धारण करेगा।

•कार्यकाल समाप्ति से पूर्व राष्ट्रपति अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को संबोधित कर लिखित में दे सकेगा त्यागपत्र की सूचना राष्ट्रपति द्वारा तुरंत लोकसभा अध्यक्ष को दी जाएगी। संविधान का अतिक्रमण करने पर राष्ट्रपति को अनुच्छेद 61 में विहित प्रक्रिया से संसद में चलाए गए महाभियोग द्वारा हटाया जा सकेगा।

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राष्ट्रपति का निर्वाचन

अनुच्छेद 54 के अनुसार राष्ट्रपति का निर्वाचन एक निर्वाचक मंडल द्वारा होता है जिसके निम्न घटक है-

°संसद के दोनों सदनों के निर्वाचित सदस्य तथा

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°राज्यों की विधानसभाओं के निर्वाचित सदस्य।

इस हेतु राज्य में दिल्ली राष्ट्रीय राजधानी राज्य से तथा पांडिचेरी संघ राज्य क्षेत्र भी शामिल किए जाते हैं। संसद के दोनों सदनों व राज्यों की विधानसभा व तथा दिल्ली को पांडिचेरी की विधानसभाओं के मनोनीत सदस्य राष्ट्रपति के निर्वाचन में भाग नहीं लेते।

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निर्वाचन की रीति: (अनुच्छेद 55)-राष्ट्रपति का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रूप से अनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल संक्रमणीय मत पद्धति से गुप्त मतदान द्वारा किया जाता है।चुनाव में निर्वाचित होने के लिए उम्मीदवार को डाले गए वैध मतों का निश्चित भाग 50% + 1 मत दो प्राप्त करना आवश्यक है।प्रथम वरीयता में पर्याप्त वोट नहीं मिलने पर न्यूनतम मत प्राप्त करने वाली उम्मीदवार के मतों की दूसरी वरीयता देखी जाती है और यह प्रक्रिया स्पष्ट बहुमत प्राप्त करने तक चलती है।

राष्ट्रपति द्वारा पद की शपथ:-(अनुच्छेद 60)राष्ट्रपति अपना पद ग्रहण करने से पूर्व भारत के मुख्य न्यायाधीश के समक्ष पद की शपथ लेगा।

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राष्ट्रपति की शक्तियाँ

26 जनवरी, 1950 को संविधान के अस्तित्व में आने के साथ ही देश ने ‘संप्रभु लोकतांत्रिक गणराज्य’ के रूप में नई यात्रा शुरू की। परिभाषा के मुताबिक गणराज्य (रिपब्लिक) का आशय होता है कि राष्ट्र का मुखिया निर्वाचित होगा, जिसको राष्ट्रपति कहा जाता है।

राष्ट्रपति की शक्तियाँ कुछ इस प्रकार से हैं; अनुच्छेद 53 : संघ की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति में निहित होगी। वह इसका उपयोग संविधान के अनुसार स्वयं या अपने अधीनस्थ अधिकारियों के माध्यम से करेगा। इसकी अपनी सीमाएँ भी हैं ;

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1. यह संघ की कार्यपालिका शक्ति (राज्यों की नहीं) होती है, जो उसमें निहित होती है।

2. संविधान के अनुरूप ही उन शक्तियों का प्रयोग किया जा सकता है।

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3. सशस्त्र सेनाओं के सर्वोच्च कमांडर की हैसियत से की जाने वाली शक्ति का उपयोग विधि के अनुरूप होना चाहिये।

 

अनुच्छेद 72 द्वारा प्राप्त क्षमादान की शक्ति के तहत राष्ट्रपति, किसी अपराध के लिये दोषी ठहराए गए किसी व्यक्ति के दंड को क्षमा, निलंबन, लघुकरण और परिहार कर सकता है। मृत्युदंड पाए अपराधी की सज़ा पर भी फैसला लेने का उसको अधिकार है।

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अनुच्छेद 80 के तहत प्राप्त शक्तियों के आधार पर राष्ट्रपति, साहित्य, विज्ञान, कला और समाज सेवा में विशेष ज्ञान या व्यावहारिक अनुभव रखने वाले 12 व्यक्तियों को राज्य सभा के लिये मनोनीत कर सकता है।

अनुच्छेद 352 के तहत राष्ट्रपति, युद्ध या बाहरी आक्रमण या सशस्त्र विद्रोह की स्थिति में आपातकाल की घोषणा कर सकता है।

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अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति द्वारा किसी राज्य के संवैधानिक तंत्र के विफल होने की दशा में राज्यपाल की रिपोर्ट के आधार पर वहाँ राष्ट्रपति शासन लगाया जा सकता है।

वहीं अनुच्छेद 360 के तहत भारत या उसके राज्य क्षेत्र के किसी भाग में वित्तीय संकट की दशा में वित्तीय आपात की घोषणा का अधिकार राष्ट्रपति को है।

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राष्ट्रपति कई अन्य महत्त्वपूर्ण शक्तियों का भी निर्वहन करता है, जो अनुच्छेद 74 के अधीन करने के लिए वह बाध्य नहीं है। वह संसद के दोनों सदनों द्वारा पास किये गए बिल को अपनी सहमति देने से पहले ‘रोक’ सकता है। वह किसी बिल (धन विधेयक को छोड़कर) को पुनर्विचार के लिये सदन के पास दोबारा भेज सकता है।

अनुच्छेद 75 के मुताबिक, ‘प्रधानमंत्री की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाएगी। चुनाव में किसी भी दल या गठबंधन को जब स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है तो राष्ट्रपति अपने विवेक का इस्तेमाल करते हुए ही सरकार बनाने के लिये लोगों को आमंत्रित करता है। ऐसे मौकों पर उसकी भूमिका निर्णायक होती है

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राष्ट्रपति पद की गरिमा का सवाल

 

सत्ता और प्रतिपक्ष को आम सहमति बनाकर राष्ट्रपति पद का उम्मीदवार तय करना चाहिये था, लेकिन यह पहल नहीं की जा सकी। महामहिम की कुर्सी पर विराजमान होने वाला व्यक्ति भारतीय गणराज्य और संप्रभु राष्ट्र का राष्ट्राध्यक्ष होता है। संवैधानिक व्यवस्था में उसका उतना ही सम्मान और अधिकार संरक्षित है, जितना इस परंपरा के दूसरे व्यक्तियों का रहा है।

आज दलित उम्मीदवार को लेकर दोनों पक्षों से जो राजनीति देखने को मिल रही है, उससे इस पद की गरिमा को ठेस ही पहुँची है। राजनैतिक दलों को यह समझना चाहिये कि दलित शब्द जुड़ने मात्र से इस पद की गरिमा नहीं बढ़ जाएगी और न ही राष्ट्रपति के तु सलाहकार क्षेत्राधिकार भी है।

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Disclaimer: इस आर्टिकल को कुछ अनुमानों और जानकारी के आधार पर बनाया है हम फाइनेंसियल एडवाइजर नही है आप इस आर्टिकल को पढ़कर शेयर बाज़ार (Stock Market), म्यूच्यूअल फण्ड (Mutual Fund), क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) निवेश करते है तो आपके प्रॉफिट (Profit) और लोस (Loss) के हम जिम्मेदार नही है इसलिए अपनी समझ से निवेश करे और निवेश करने से पहले फाइनेंसियल एडवाइजर की सलाह जरुर ले

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