थार के मरुस्थल की उत्पति के विषय में सामान्य जानकारी

थार मरुस्थल की उत्पत्ति के बारे में

थार मरुस्थल की उत्पत्ति के बारे में  विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है-

थार के मरुस्थल की उत्पति-

राजस्थान के मरुस्थल की उत्पत्ति के विषय में भूगर्भवेत्ताओ के मतों में भिन्नता है। कुछ विद्वान यह स्वीकार करते हैं कि जहां आज मरुस्थल है। वहा पूर्व में उपजाऊ वन आच्छादित आर्द्र प्रदेश थे। जो कालांतर में भूगर्भिक परिवर्तनों से शुष्क मरूभूमि में परिवर्तन हो गया भूगर्भिक प्रमाण स्पष्ट दर्शाते है।कि पर्मो-कार्बोनिफेरस काम में पश्चिमी राजस्थान पर विस्तृत मरुस्थल था। जुरेसिक, क्रिटेशियस, और इन्थोसीन भूगर्भिक युगो में यह क्षेत्र समुद्र के नीचे था। और धीरे धीरे यहां से समुद्र खिसकने लगा, तत्पश्चात प्लिस्टीसीन काल में यहां मनुष्यों का प्रादुर्भाव हुआ, जो क्रमश: विस्तृत होता गया और मानवीय क्रिया-कलापों ने इसे मरुस्थलीय क्षेत्र बनाने में महंती भूमिका निभाई फलस्वरूप ईसा पूर्व 4000 से 1000 वर्ष के मध्य क्षेत्र में पुर्ण मरूस्थलीय दशाओं का विकास हो गया। यहां विद्यमान खारे पानी की झीलों को समुद्र का अवशेष माना जाता है।

थार मरुस्थल के बारे में

सर सिरिल फॉक्स-

मरुस्थल का दक्षिणी पश्चिमी एवं सिंध का निचली घाटी वाला भाग अप्पर टर्शियरी युग तक समुद्री जीवाश्म से स्पष्ट होता है।

बैलेण्डफो –

समुद्र के निरंतर पीछे हटने के परिणाम स्वरूप सिकुड़न क्रिया से उत्थित समुद्र तली में मरुस्थल क्षेत्र को जन्म दिया। जिसका परिणाम इस क्षेत्र की लवणीय झीलें हैं तथा कच्छ का दलदली भाग भी उसी का अवशेष है

ला टूश-

नामक विद्वान ने पश्चिमी राजस्थान में बालू की उपलब्धि के विषय में बताया। कि यह मिट्टी यहां प्रचलित दक्षिणी पश्चिमी झंझावातों दोबारा लाई गई और पश्चिमी राजस्थान के अधिकांश भागो में जमा हो गया है। वैसे जलवायु की शुष्कता इस क्षेत्र को मरुस्थली रूप देने में सबसे प्रभावशाली कारक है। जैसलमेर के निकट आकल wood fossil park में इसका प्रमाण जहां करोड़ों वर्षों पूर्व के विशाल वृक्षों के अवशेष मिट्टी में दबे हुए मिले हैं भूगर्भशास्त्रियों का मत है कि यह क्षेत्र पहले एक बहुत ही उपजाऊ भाग था। जहां बड़ी बड़ी नदियां बहती थी। किंतु भूगर्भिक हलचलो द्वारा इस क्षेत्र के ऊपर उठ जाने से इस क्षेत्र का जल प्रवाह गंगा या सिंधु नदी में मिल गया तथा यहां शुष्कता बढ़ गई।

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