भारतीय पुनर्जागरण के कारण और उनकी व्याख्या
भारतीय पुनर्जागरण के कारण
भारतीय पुनर्जागरण के प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
19वीं शताब्दी में जब पाश्चात्य संस्कृति और शिक्षा से भारतीयों का संपर्क हुआ। तब भारतीय समाज को भी परिष्कृत करने तथा नया धार्मिक एवं सामाजिक दृष्टिकोण विकसित करने के प्रयास प्रारंभ हुए। इन प्रयासों के फलस्वरूप संपूर्ण भारतीय जीवन में नई चेतना की लहर उत्पन्न हो गई । राजा राममोहन राय, स्वामी दयानंद सरस्वती, स्वामी रामकृष्ण परमहंस, विवेकानंद आदि ने हिंदू धर्म, समाज और संस्कृति में सुधार लाने हेतु जबरदस्त आंदोलन छेड़ा। इस पुनर्जागरण के मूल में अनेक कारण थे जो इस प्रकार हैं-
(1) भारतीय समाज और धर्म में दोष- भारतीय समाज और धर्म में अनेक दोष उत्पन्न हो गए थे। भारतीय समाज अंधविश्वासों के गर्त में डूब गया था मूर्ति पूजा, बहुदेववाद, जादू-टोने स्त्रियों की दुर्दशा, जातीय बंधन, संकीर्ण दृष्टिकोण तथा अन्य दोषों के कारण भारतीय समाज खोखला होता जा रहा था।
(2) पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव- अंग्रेजी शिक्षा के कारण ही भारतीय नवयुवकों के दृष्टिकोण में परिवर्तन आया। पाश्चात्य शिक्षा के द्वारा ही यूरोपीय विज्ञान, दर्शन और साहित्य का अध्ययन हमारा देश में प्रारंभ हुआ। भारतीय यूरोप की उदारवादी विचारधारा से प्रसिद्ध हुए, जिससे उनकी सदियों की मोह निद्रा भंग हुई। अब विचारों की शिथिलता प्रगति में बदलाव आया। परंपरागत रीति रिवाजों के अंधानुकरण का वे विरोध करने लगे।
(3) भारतीय समाचार पत्रों का योगदान- भारतीय समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, साहित्य आदि ने भी धर्म एवं समाज सुधार आंदोलन में सहयोग प्रदान किया। भारत में पहला अंग्रेजी भाषा में समाचार पत्र 1816 इस्वी में ‘बंगाल गजट’ के नाम से प्रकाशित हुआ। तत्पश्चात बंगाली भाषा में ‘दिग्दर्शन’ तथा ‘समाचार दर्पण’ 1818 में प्रकाशित हुए।1821 ईस्वी में राजा राममोहन राय ने साप्ताहिक ‘संवाद कौमुदी’ प्रकाशित किया जिसमें अनेक धार्मिक और सामाजिक विचार प्रकाशित होते थे उन्होंने 1822 में फारसी भाषा में साप्ताहिक ‘मिरात उल अखबार’ तथा अंग्रेजी में ‘ब्राह्मनिकल’ मैगनीज निकालना शुरू किया। इन समाचार पत्र के माध्यम से भारतीयों ने सामाजिक और धार्मिक समस्याओं पर विचार-विमर्श करना शुरू कर दिया। इन समाचार पत्रों में यह भी मत व्यक्त किया जाता था कि अंग्रेजी साम्राज्य भारतीय जनता को नैतिक, आर्थिक और मानसिक पतन की ओर ले जा रहा हैं। इनके कारणों से लोगों में आत्मसम्मान की सुरक्षा की भावना उत्पन्न हुई और उन्होंने अपने समाज, देश और धर्म की रक्षा करने के प्रयास को गंभीरता से प्रारंभ किया।
(4) पाश्चात्य सभ्यता का प्रभाव- बंगाल की एशियाटिक सोसाइटी ने पुनर्जागरण में महत्वपूर्ण योगदान दिया। यह सोसाइटी के तत्वाधान में प्राचीन भारतीय ग्रंथों तथा यूरोपीय साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद हुआ।पाश्चात्य विद्वानों ने बताया कि भारतीय साहित्य विश्व सभ्यता की अमूल्य निधियों हैं।
(5) एशियाटिक सोसायटी बंगाल के कार्य- भारत में अंग्रेजों के आने जाने के साथ-साथ पश्चिमी सभ्यता का भी आगमन हुआ। यह संपर्क ऐसे समय हुआ जब यूरोप के विचारों का बुद्धिवाद और व्यक्तिवाद आधिपत्य जमाए हुए था। गसका प्रभाव यह पड़ा कि अंग्रेजी पढ़े-लिखे लोगों के लिए पाश्चात्य सभ्यता आदर्श बन गई।
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