मरुस्थलीय प्रदेश या पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश- के बारे में जानकारी
मरुस्थलीय प्रदेश या पश्चिमी मरुस्थलीय प्रदेश-
यह मैदान अरावली के पश्चिमी में स्थित राज्य का सबसे बड़ा भौगोलिक क्षेत्र है। यह 10 सेमी से 50 सेमी समवर्षा रेखा के बीच का भाग है। यह क्षेत्र राजस्थान की कुल क्षेत्रफल में 2,13,688 किलोमीटर का योगदान देता है। जो राजस्थान के कुल क्षेत्रफल का लगभग 61.1% हैं। इस क्षेत्र के अंतर्गत राज्य की कुल 12 जिले आते हैं।
1. गंगानगर
2. हनुमानगढ़
3. झुंझुनू
4. बीकानेर
5. चूरू
6. सीकर
7. जैसलमेर
8. जोधपुर
9. नागौर
10. बाड़मेर
11. जालौर
12. पाली
पश्चिमी मरुस्थलीय मैदान दो भागों में विभक्त है
1. शुष्क मैदान
शुष्क प्रदेश-
यह क्षेत्र 10 से 25 सेमी सम वर्षा रेखा का क्षेत्र है। इसके अंतर्गत बीकानेर, श्रीगंगानगर का दक्षिणी भाग ,जैसलमेर बाड़मेर उत्तर पश्चिम जालौर ,पश्चिमी जोधपुर, पश्चिमी नागौर ,दक्षिण पश्चिम चूरू शामिल किया जाता है। यह क्षेत्र थार मरुस्थल के नाम से भी जाना जाता है। इसका विस्तार 25 डिग्री उत्तरी अक्षांश 30 डिग्री उत्तरी अक्षांश व 69°30 पूर्वी से 70°45 पूर्वी देशांतर तक दिखाई देता है
शुष्क प्रदेश का उप विभाजन दो रूपों में किया जाता है
1. बालुका स्तूप मुक्त
2. बालुका स्तूप युक्त
बालुका स्तूप मुक्त-
यह क्षेत्र रेत के टीलों से मुक्त भाग है। जो नदी द्वारा लाए गए बालू का कणों से युक्त चट्टानों के रूप में दिखाई देता है। जिससे स्थानीय भाषा में लाठी सीरीज का जाता है।यह क्षेत्र मुख्यता जोधपुर के फलौदी से लेकर जैसलमेर के पोकरण तक लगभग 64 किलोमीटर में विस्तारित है।
2. बालुका स्तूप युक्त-
समवर्षा रेखा के मध्य का ही भाग है इसके अंतर्गत मरूभूमि के विभिन्न रूप दिखाई देते हैं।
(¡)इर्ग-
संपूर्ण रेतीला मरुस्थलीय भू भाग जो बालुका स्तूप चट्टानी सतह एंव वनस्पति युक्त दिखाई देता है इसे कहते हैं।
(2) रेग-
मिश्रित मरुस्थल जिसमें बालुका स्तूप एवं चट्टानी सतह उपस्थित दिखाई दे,रेग कहलाता हैं।
(3) हमादा-
चट्टानी पत्थरीला मरुस्थल भू-भाग
(4)रेह/कल्लर-
मरुस्थलीय भागों में सतह पर विकसित लवणीय भाग अर्थात नमक की परत से युक्त सतह रेह कल्लर कहलाती है
(5)प्लाया-
शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में अभिकेंद्रीय बल से प्रेरित होकर विकसित होने वाली झीलें प्लाया झीलें कहलाती है प्राय:-पश्चिम क्षेत्र में लवणीय रूप दिखाई देती है।
(6)बालसन-
शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में जल से विकसित हुआ बेसिन बालसन कहलाता हैं।
(7)बजादा-
शुष्क व अर्द्ध शुष्क भागों में उच्च वर्ती भागों के तलहटी (गिरिपाद) क्षेत्र में एकत्रित होने वाला कंकड़ पत्थर युक्त क्षेत्र बजादा कहलाता हैं।
(8)रण-
राज्य के पश्चिमी भागों में वर्षा जल से विकसित दलदली भूमि जैसे:-कनोड, बरमरमर, पोकरण इत्यादि। कहीं-कहीं इन टीलों के बीच में निम्र भूमि मिलती है जिससे तल्ली कहते हैं वर्षा का जल भर जाने से ये तल्लिया अस्थायी झीलें बन जाती है जिन्हें ढाढ या रण कहते हैं।
पश्चिमी मरुस्थलीय भागों में मरूभूमि की वास्तविक पहचाना बालुका स्तूपो से होती है जो अलग-अलग स्वरूपों में दिखाई देते हैं मुख्य बालूका स्तूप निम्न प्रकार से हैं।
(1) अनुदैधर्य पवनानुवर्ती:-
यह पवन की दिशा के अनुरूप विकसित होते हैं यह 100-200 मीटर लंबे एवं 10-20 मीटर ऊंचे होते हैं यह स्थायी प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनके कण बड़े दिखाई देते हैं। क्षेत्र-बाड़मेर, जैसलमेर (रामगढ़ ),दक्षिणी पश्चिमी जोधपुर
(2) अनुप्रस्थ अपवनानुवर्ती:-
यह पवन की दिशा के समकोण में विकसित होते हैं विशेषकर जब पवन दीर्घकाल तक एक ही दिशा में गमन करती है आकार में पंजाकार दिखाई देती है। क्षेत्र-हनुमानगढ़ (रावतसर) ,श्री गंगानगर (सूरतगढ़ ),बीकानेर , जैसलमेर का उत्तरी भाग ,जोधपुर उत्तर पश्चिमी भाग
(3) तारा आकृति:-
जब बालुका स्तूप से कई शाखाएं विकसित हो जाए। क्षेत्र-जैसलमेर (सोनगढ़ ,पोकरण), श्री गंगानगर (सूरतगढ़)
(4)बरखान अर्द्धचंद्राकार:-
यह बेहद गतिशील बालुका स्तूप है इसके किनारे अंदर की तरफ मुडे होते हैं क्षेत्र-श्री गंगानगर (सूरतगढ़ ),चूरू(भालेरी ), बीकानेर (लूणकरणसर ,करणी माता), जोधपुर (ओसियां )आदि
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