संप्रभुता के प्रकार और परिभाषा
संप्रभुता के प्रकार और परिभाषा के बारे में जानकारी निम्नलिखित है-
(1)- औपचारिक और वास्तविक संप्रभुता– औपचारिक या नाममात्र की संप्रभुता का एक व्यक्ति या ऐसी इकाई से जिसके पास सैद्धांतिक संपूर्ण शक्ति निहित है परंतु व्यवहार में इस प्रकार की शक्ति का प्रयोग वह अपने विवेक के आधार पर नहीं करता है औपचारिक या नाममात्र का संप्रभु कहलाता है। औपचारिक संप्रभु की शक्तियों का यथार्थ रूप में/ व्यवहारवादी के रूप में प्रयोग करने वाला वास्तविक संप्रभु कहलाता है जैसे भारत का राष्ट्रपति, ब्रिटेन का सम्राट औपचारिक संप्रभु है वही प्रधानमंत्री और उसका मंत्री परिषद वास्तविक संप्रभु होते हैं।
(2)-कानूनी संप्रभुता– राज्य के अंतर्गत कानूनों का निर्माण करने और उनका पालन कराने की सर्वोच्च शक्ति जिसके पास होती है और वह जिससे न्यायालय स्वीकाऊ करता है उसे कानूनी संप्रभुता का जाता है। वैधानिक दृष्टि से इस सर्वोच्च शक्ति पर कोई प्रतिबंध नहीं होता है और वह धार्मिक सिद्धांतों, नैतिक आदर्शों व जनमत के आदेशों का उल्लंघन कर सकता है।
गवर्नर के शब्दों में-“कानूनी संप्रभु वह निश्चित सकती है जो राज्य के उच्चतम आदेशों को कानून के रूप में प्रकट कर सकती है।”
और वह शक्ति जो ईश्वर के नियमों या नैतिकता के सिद्धांत तथा जनमत के आदेशों का उल्लंघन कर सके। जैसे सम्राट सहित ब्रिटेन की संसद।
(3)-राजनीतिक संप्रभुता– राजनैतिक संप्रभुता अप्रत्यक्ष लोकतांत्रिक देशों में जनता में नहीं होती है जिसको वे चुनाव द्वारा राजनेताओं को सौप देते हैं।
डायसी के शब्दों में”जिस संप्रभु को वकील लोग मानते हैं उसके पीछे दूसरा संप्रभु रहता है इस संप्रभु के सामने कानूनी संप्रभु को सिर झुकाना पड़ता है जिसकी इच्छा को अंतिम रूप से राज्य के नागरिक मानते हैं वहीं राजनीतिक संप्रभु है।”
अर्थात कानून संप्रभु की सत्ता पर नियंत्रण रखने वाली शक्ति को राजनीतिक संप्रभुता आ जाता है।
(4)वैध या यथार्थ संप्रभु(विधिक या वस्तुत:)- एक देश के संविधान द्वारा जिस व्यक्ति या संस्था को शासन करने का अधिकार प्रदान किया जाता है उसे वैध संप्रभु कहते हैं। और जिस व्यक्ति या संप्रदाय के अंतर्गत व्यवहार में अथवा वास्तव में शासन किया जाता है अर्थात् जनता से जो व्यक्ति या समुदाय वास्तव में अपनी इच्छाओं का पालन करवाता है उसे यथार्थ संप्रभु कहते हैं। जैसी 2000 पाकिस्तान में सेना अध्यक्ष परवेज मुशर्रफ ने नवाशरीफ को प्रधानमंत्री पद से हटाकर शासन पर नियंत्रण कर लिया तो वह यथार्थ संप्रभु बन गया। और कुछ समय पश्चात ही उसने राष्ट्रपति चुनाव में जीत हासिल कर ली और वैध संप्रभु बन गया।
(5) जनसंप्रभुता/लोकप्रिय संप्रभुता :- सिद्धांत का प्रतिपादन मार्सिलिया पाडवा लोकप्रिय संप्रभुता का तात्पर्य है संप्रभु शक्ति का जनता में नहीं होना तथा जनता द्वारा ही शासन की इन शक्तियों का प्रयोग करना है अर्थात लौकिक या लोकप्रिय संप्रभुता का प्रत्यक्ष लोकतंत्रात्मक देशों में जनता के पास होती है। रूसो ने भी इसी संप्रभुता के सिद्धांत को स्वीकार किया है और इस संबंध में लिखा है कि “जनता की वाणी ही ईश्वर की वाणी है राज्य की संप्रभु शक्ति जनता में निहित होती है और सरकार शासन व कानून निर्माण शक्ति जनता से ही प्राप्त करती है।”
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Nice Sir
सर धन्यवाद आपके वैल्यूबल कमेंट के लिए