भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court of india)

भारत का सर्वोच्च न्यायालय

भारत का सर्वोच्च न्यायालय के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है

भारत का सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ देश का शीर्ष न्यायालय है एवं यह भारत के संविधान के तहत न्याय की अपील हेतु अंतिम न्यायालय है। भारत एक संघीय राज्य है एवं इसकी एकल तथा एकीकृत न्यायिक प्रणाली है जिसकी त्रिस्तरीय संरचना है, अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय।

Supreme court of India
सर्वोच्च न्यायालय की संक्षिप्त पृष्ठभूमि-

वर्ष 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रवर्तन से कलकत्ता में पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में सर्वोच्च न्यायाधिकरण की स्थापना की गई।

बंगाल, बिहार और उड़ीसा में यह सभी अपराधों की शिकायतों को सुनने तथा निपटान करने के लिये एवं किसी भी सूट या कार्यों की सुनवाई एवं निपटान हेतु स्थापित किया गया था।

मद्रास एवं बंबई में सर्वोच्च न्यायालय जॉर्ज तृतीय द्वारा क्रमशः वर्ष 1800 एवं वर्ष 1823 में स्थापित किये गए थे।

भारत उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत विभिन्न प्रांतों में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई एवं कलकत्ता, मद्रास और बंबई में सर्वोच्च न्यायालयों को तथा प्रेसीडेंसी शहरों में सदर अदालतों को समाप्त कर दिया गया।

इन उच्च न्यायालयों को भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के संघीय न्यायालय की स्थापना तक सभी मामलों के लिये सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था।

संघीय न्यायालय के पास प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों को हल करने और उच्च न्यायालयों के निर्णय के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार क्षेत्र था।

वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।

संवैधानिक प्रावधान-

भारतीय संविधान में भाग पाँच (संघ) एवं अध्याय 6 (संघ न्यायपालिका) के तहत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है।

संविधान के भाग पाँच में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।

अनुच्छेद 124 (1) के तहत भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश (CJI) होगा तथा सात से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं हो सकते।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सामान्य तौर पर मूल अधिकार क्षेत्र, अपीलीय क्षेत्राधिकार और सलाहकार क्षेत्राधिकार में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास अन्य कई शक्तियाँ हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का संगठन (Organisation)-

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीस अन्य न्यायाधीश) हैं।

सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) 2019 के विधेयक में चार न्यायाधीशों की वृद्धि की गई। इसने मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायिक शक्ति को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया।

मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी।

संसद उन्हें विनियमित करने के लिये अधिकृत है।

सर्वोच्च न्यायालय का स्थान-

संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का स्थान घोषित करता है।

न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझता है तो मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह ली जाती है।

अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है, यदि वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना अनिवार्य है।

कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)

कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत ‘तृतीय न्यायाधीश मामले’ के माध्यम से हुई थी और यह वर्ष 1998 से चलन में है। इसका उपयोग उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्तियों एवं स्थानांतरण के लिये किया जाता है।

भारत के मूल संविधान में या संशोधनों में कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है।

कॉलेजियम प्रणाली की कार्यप्रणाली-

कॉलेजियम केंद्र सरकार को वकीलों या न्यायाधीशों के नाम प्रस्तावित करता है। इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपने कुछ प्रस्तावित नामों को कॉलेजियम को भेजती है।

कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नामों या सुझावों पर विचार करता है एवं अंतिम अनुमोदन के लिये फाइल को सरकार के पास भेज देता है।

यदि कोलेजियम फिर से उन्हीं नामों को पुनः भेजता है तो सरकार को उन नामों पर अपनी सहमति देनी होगी लेकिन जवाब देने के लिये समयसीमा तय नहीं है।

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली को बरकरार रखा

न्यायाधीशों की योग्यताएँ-

(1)वह भारत का नागरिक हो ।

(2)उसे कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये किसी उच्च न्यायालय (या उत्तरोतर एक से अधिक न्यायालय) का न्यायाधीश होना चाहिये,

या

उसे दस वर्षों के लिये उच्च न्यायालय ( या उत्तरोतर एक से अधिक उच्च न्यायालय) का अधिवक्ता होना चाहिये,

या

उसे राष्ट्रपति के मत में एक प्रतिष्ठित न्यायवादी होना चाहिये।

(3)सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये संविधान में न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है।

शपथ –

सर्वोच्च न्यायालय के लिये नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यभार संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिये राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति दिलायेगा।

न्यायाधीशों का कार्यकाल-

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होगा।

न्यायाधीशों को अपदस्थ करना-

राष्ट्रपति के आदेश से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति उसे हटाने का आदेश तभी जारी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो।

इस आदेश को संसद के दोनों सदस्यों के विशेष बहुमत (अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। उसे हटाने का आधार दुर्व्यवहार या अक्षमता होना चाहिये।

न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है-

अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है। न्यायमूर्ति वी रामास्वामी (1991-1993) और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा (2017-18) के महाभियोग के प्रस्ताव संसद में पारित नहीं हुए।

सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता-

सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय, अपील का सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का गारंटर और संविधान का संरक्षक है।

अतः इसे सौंपे गए कर्त्तव्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये इसकी स्वतंत्रता बहुत आवश्यक हो जाती है। यह कार्यकारी (मंत्रियों की परिषद) और विधानमंडल (संसद) के अतिक्रमण, दबावों एवं हस्तक्षेपों से मुक्त होना चाहिये। इसे बिना किसी डर या पक्षपात के न्याय करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिये।

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के स्वतंत्र और निष्पक्ष कामकाज को सुरक्षित रखा है।

मूल क्षेत्राधिकार-

एक संघीय न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच विवादों का फैसला करता है। अधिक विस्तृत रूप से देखें तो निम्न के मध्य किसी भी विवाद का निर्णय करता है-

केंद्र व एक या अधिक राज्यों के मध्य,

या

केंद्र एवं कोई राज्य या राज्यों का एक तरफ होना तथा एक अथवा अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना,

या

दो या अधिक राज्यों के मध्य

न्यायादेश क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction)-

सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध एवं अधिकार प्रेच्छा आदि पर न्यायादेश जारी कर विक्षिप्त नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करे।

इससे संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र इस अर्थ में है कि एक पीड़ित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है, ज़रूरी नहीं कि यह कार्य याचिका के माध्यम से किया जाए।

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायादेश अधिकार क्षेत्र पर विशेषाधिकार नहीं है। उच्च न्यायालयों को भी मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)-

सर्वोच्च न्यायालय मुख्य रूप से अपील हेतु अदालत है और निचली अदालतों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है। इसको एक विस्तृत अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है जिसे चार शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:-1.संवैधानिक मामलों में अपील 2.दीवानी मामलों में अपील 3.आपराधिक मामलों में अपील 4.विशेष अनुमति द्वारा अपील।

सलाहकार क्षेत्राधिकार –

अनुच्छेद 143 के तहत संविधान राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने का अधिकार देता है:

सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर अथवा प्रश्न उठने की संभावना पर।

किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, प्रसंविदा आदि सनद संबंधी मामलों पर कोई विवाद उत्पन्न होने पर।

अभिलेख का न्यायालय –

अभिलेखों के न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के पास दो शक्तियाँ हैं-

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, कार्यवाही और उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख एवं साक्ष्य के रूप में दर्ज़ किये जाते हैं तथा किसी अन्य अदालत में चल रहे मामलों के दौरान इन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।

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Disclaimer: इस आर्टिकल को कुछ अनुमानों और जानकारी के आधार पर बनाया है हम फाइनेंसियल एडवाइजर नही है आप इस आर्टिकल को पढ़कर शेयर बाज़ार (Stock Market), म्यूच्यूअल फण्ड (Mutual Fund), क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) निवेश करते है तो आपके प्रॉफिट (Profit) और लोस (Loss) के हम जिम्मेदार नही है इसलिए अपनी समझ से निवेश करे और निवेश करने से पहले फाइनेंसियल एडवाइजर की सलाह जरुर ले

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भारत का सर्वोच्च न्यायालय (Supreme court of india)

भारत का सर्वोच्च न्यायालय

भारत का सर्वोच्च न्यायालय के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है

भारत का सर्वोच्च न्यायालय न्यायिक समीक्षा की शक्ति के साथ देश का शीर्ष न्यायालय है एवं यह भारत के संविधान के तहत न्याय की अपील हेतु अंतिम न्यायालय है। भारत एक संघीय राज्य है एवं इसकी एकल तथा एकीकृत न्यायिक प्रणाली है जिसकी त्रिस्तरीय संरचना है, अर्थात् सर्वोच्च न्यायालय, उच्च न्यायालय और अधीनस्थ न्यायालय।

Supreme court of India
सर्वोच्च न्यायालय की संक्षिप्त पृष्ठभूमि-

वर्ष 1773 के रेग्युलेटिंग एक्ट के प्रवर्तन से कलकत्ता में पूर्ण शक्ति एवं अधिकार के साथ कोर्ट ऑफ रिकॉर्ड के रूप में सर्वोच्च न्यायाधिकरण की स्थापना की गई।

बंगाल, बिहार और उड़ीसा में यह सभी अपराधों की शिकायतों को सुनने तथा निपटान करने के लिये एवं किसी भी सूट या कार्यों की सुनवाई एवं निपटान हेतु स्थापित किया गया था।

मद्रास एवं बंबई में सर्वोच्च न्यायालय जॉर्ज तृतीय द्वारा क्रमशः वर्ष 1800 एवं वर्ष 1823 में स्थापित किये गए थे।

भारत उच्च न्यायालय अधिनियम 1861 के तहत विभिन्न प्रांतों में उच्च न्यायालयों की स्थापना की गई एवं कलकत्ता, मद्रास और बंबई में सर्वोच्च न्यायालयों को तथा प्रेसीडेंसी शहरों में सदर अदालतों को समाप्त कर दिया गया।

इन उच्च न्यायालयों को भारत सरकार अधिनियम 1935 के तहत भारत के संघीय न्यायालय की स्थापना तक सभी मामलों के लिये सर्वोच्च न्यायालय होने का गौरव प्राप्त था।

संघीय न्यायालय के पास प्रांतों और संघीय राज्यों के बीच विवादों को हल करने और उच्च न्यायालयों के निर्णय के खिलाफ अपील सुनने का अधिकार क्षेत्र था।

वर्ष 1947 में भारत को स्वतंत्रता मिलने के बाद 26 जनवरी, 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ। साथ ही भारत का सर्वोच्च न्यायालय भी अस्तित्व में आया एवं इसकी पहली बैठक 28 जनवरी, 1950 को हुई।

संवैधानिक प्रावधान-

भारतीय संविधान में भाग पाँच (संघ) एवं अध्याय 6 (संघ न्यायपालिका) के तहत सर्वोच्च न्यायालय का प्रावधान किया गया है।

संविधान के भाग पाँच में अनुच्छेद 124 से 147 तक सर्वोच्च न्यायालय के संगठन, स्वतंत्रता, अधिकार क्षेत्र, शक्तियों एवं प्रक्रियाओं से संबंधित हैं।

अनुच्छेद 124 (1) के तहत भारतीय संविधान में कहा गया है कि भारत का एक सर्वोच्च न्यायालय होगा जिसमें एक मुख्य न्यायाधीश (CJI) होगा तथा सात से अधिक अन्य न्यायाधीश नहीं हो सकते।

भारत के सर्वोच्च न्यायालय के क्षेत्राधिकार को सामान्य तौर पर मूल अधिकार क्षेत्र, अपीलीय क्षेत्राधिकार और सलाहकार क्षेत्राधिकार में वर्गीकृत किया जा सकता है। हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय के पास अन्य कई शक्तियाँ हैं।

सर्वोच्च न्यायालय का संगठन (Organisation)-

वर्तमान में सर्वोच्च न्यायालय में 31 न्यायाधीश (एक मुख्य न्यायाधीश एवं तीस अन्य न्यायाधीश) हैं।

सर्वोच्च न्यायालय (न्यायाधीशों की संख्या) 2019 के विधेयक में चार न्यायाधीशों की वृद्धि की गई। इसने मुख्य न्यायाधीश सहित न्यायिक शक्ति को 31 से बढ़ाकर 34 कर दिया।

मूल रूप से सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की संख्या आठ (एक मुख्य न्यायाधीश एवं सात अन्य न्यायाधीश) निर्धारित की गई थी।

संसद उन्हें विनियमित करने के लिये अधिकृत है।

सर्वोच्च न्यायालय का स्थान-

संविधान दिल्ली को सर्वोच्च न्यायालय का स्थान घोषित करता है।

न्यायाधीशों की नियुक्तियाँ

सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है। यदि राष्ट्रपति आवश्यक समझता है तो मुख्य न्यायाधीश की नियुक्ति के लिये सर्वोच्च न्यायालय एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों की सलाह ली जाती है।

अन्य न्यायाधीशों को राष्ट्रपति द्वारा मुख्य न्यायाधीश एवं सर्वोच्च न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के ऐसे अन्य न्यायाधीशों के साथ परामर्श के बाद नियुक्त किया जाता है, यदि वह आवश्यक समझता है। मुख्य न्यायाधीश के अतिरिक्त किसी अन्य न्यायाधीश की नियुक्ति के मामले में मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श करना अनिवार्य है।

कॉलेजियम प्रणाली (Collegium System)

कॉलेजियम प्रणाली की शुरुआत ‘तृतीय न्यायाधीश मामले’ के माध्यम से हुई थी और यह वर्ष 1998 से चलन में है। इसका उपयोग उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में न्यायाधीशों की नियुक्तियों एवं स्थानांतरण के लिये किया जाता है।

भारत के मूल संविधान में या संशोधनों में कॉलेजियम का कोई उल्लेख नहीं है।

कॉलेजियम प्रणाली की कार्यप्रणाली-

कॉलेजियम केंद्र सरकार को वकीलों या न्यायाधीशों के नाम प्रस्तावित करता है। इसी प्रकार केंद्र सरकार भी अपने कुछ प्रस्तावित नामों को कॉलेजियम को भेजती है।

कॉलेजियम केंद्र सरकार द्वारा प्रस्तावित नामों या सुझावों पर विचार करता है एवं अंतिम अनुमोदन के लिये फाइल को सरकार के पास भेज देता है।

यदि कोलेजियम फिर से उन्हीं नामों को पुनः भेजता है तो सरकार को उन नामों पर अपनी सहमति देनी होगी लेकिन जवाब देने के लिये समयसीमा तय नहीं है।

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय ने कॉलेजियम प्रणाली को बरकरार रखा

न्यायाधीशों की योग्यताएँ-

(1)वह भारत का नागरिक हो ।

(2)उसे कम-से-कम पाँच वर्षों के लिये किसी उच्च न्यायालय (या उत्तरोतर एक से अधिक न्यायालय) का न्यायाधीश होना चाहिये,

या

उसे दस वर्षों के लिये उच्च न्यायालय ( या उत्तरोतर एक से अधिक उच्च न्यायालय) का अधिवक्ता होना चाहिये,

या

उसे राष्ट्रपति के मत में एक प्रतिष्ठित न्यायवादी होना चाहिये।

(3)सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश के रूप में नियुक्ति के लिये संविधान में न्यूनतम आयु निर्धारित नहीं की गई है।

शपथ –

सर्वोच्च न्यायालय के लिये नियुक्त न्यायाधीश को अपना कार्यभार संभालने से पूर्व राष्ट्रपति या इस कार्य के लिये राष्ट्रपति द्वारा नियुक्त व्यक्ति दिलायेगा।

न्यायाधीशों का कार्यकाल-

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश का कार्यकाल 65 वर्ष की आयु तक होगा।

न्यायाधीशों को अपदस्थ करना-

राष्ट्रपति के आदेश से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीश को पद से हटाया जा सकता है। राष्ट्रपति उसे हटाने का आदेश तभी जारी कर सकता है, जब इस प्रकार हटाए जाने हेतु संसद द्वारा उसी सत्र में ऐसा संबोधन किया गया हो।

इस आदेश को संसद के दोनों सदस्यों के विशेष बहुमत (अर्थात् सदन की कुल सदस्यता का बहुमत एवं सदन में उपस्थित और मत देने वाले सदस्यों का दो-तिहाई) का समर्थन प्राप्त होना चाहिये। उसे हटाने का आधार दुर्व्यवहार या अक्षमता होना चाहिये।

न्यायाधीश जाँच अधिनियम (1968) सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों को हटाने के संबंध में महाभियोग की प्रक्रिया का उपबंध करता है-

अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के किसी भी न्यायाधीश पर महाभियोग नहीं लगाया गया है। न्यायमूर्ति वी रामास्वामी (1991-1993) और न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा (2017-18) के महाभियोग के प्रस्ताव संसद में पारित नहीं हुए।

सर्वोच्च न्यायालय की स्वतंत्रता-

सर्वोच्च न्यायालय एक संघीय न्यायालय, अपील का सर्वोच्च न्यायालय, नागरिकों के मौलिक अधिकारों का गारंटर और संविधान का संरक्षक है।

अतः इसे सौंपे गए कर्त्तव्यों के प्रभावी निर्वहन के लिये इसकी स्वतंत्रता बहुत आवश्यक हो जाती है। यह कार्यकारी (मंत्रियों की परिषद) और विधानमंडल (संसद) के अतिक्रमण, दबावों एवं हस्तक्षेपों से मुक्त होना चाहिये। इसे बिना किसी डर या पक्षपात के न्याय करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिये।

संविधान ने सर्वोच्च न्यायालय के स्वतंत्र और निष्पक्ष कामकाज को सुरक्षित रखा है।

मूल क्षेत्राधिकार-

एक संघीय न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय भारतीय संघ की विभिन्न इकाइयों के बीच विवादों का फैसला करता है। अधिक विस्तृत रूप से देखें तो निम्न के मध्य किसी भी विवाद का निर्णय करता है-

केंद्र व एक या अधिक राज्यों के मध्य,

या

केंद्र एवं कोई राज्य या राज्यों का एक तरफ होना तथा एक अथवा अधिक राज्यों का दूसरी तरफ होना,

या

दो या अधिक राज्यों के मध्य

न्यायादेश क्षेत्राधिकार (Writ Jurisdiction)-

सर्वोच्च न्यायालय को अधिकार प्राप्त है कि वह बंदी प्रत्यक्षीकरण, परमादेश, उत्प्रेषण, प्रतिषेध एवं अधिकार प्रेच्छा आदि पर न्यायादेश जारी कर विक्षिप्त नागरिकों के मूल अधिकारों की रक्षा करे।

इससे संबंधित सर्वोच्च न्यायालय का मूल अधिकार क्षेत्र इस अर्थ में है कि एक पीड़ित नागरिक सीधे सर्वोच्च न्यायालय में जा सकता है, ज़रूरी नहीं कि यह कार्य याचिका के माध्यम से किया जाए।

हालाँकि सर्वोच्च न्यायालय का न्यायादेश अधिकार क्षेत्र पर विशेषाधिकार नहीं है। उच्च न्यायालयों को भी मौलिक अधिकारों के प्रवर्तन के लिये रिट जारी करने का अधिकार है।

अपीलीय क्षेत्राधिकार (Appellate Jurisdiction)-

सर्वोच्च न्यायालय मुख्य रूप से अपील हेतु अदालत है और निचली अदालतों के निर्णयों के खिलाफ अपील सुनता है। इसको एक विस्तृत अपीलीय क्षेत्राधिकार प्राप्त है जिसे चार शीर्षकों के अंतर्गत वर्गीकृत किया जा सकता है:-1.संवैधानिक मामलों में अपील 2.दीवानी मामलों में अपील 3.आपराधिक मामलों में अपील 4.विशेष अनुमति द्वारा अपील।

सलाहकार क्षेत्राधिकार –

अनुच्छेद 143 के तहत संविधान राष्ट्रपति को दो श्रेणियों के मामलों में सर्वोच्च न्यायालय की राय लेने का अधिकार देता है:

सार्वजनिक महत्त्व के किसी मामले पर विधिक प्रश्न उठने पर अथवा प्रश्न उठने की संभावना पर।

किसी पूर्व संवैधानिक संधि, समझौते, प्रसंविदा आदि सनद संबंधी मामलों पर कोई विवाद उत्पन्न होने पर।

अभिलेख का न्यायालय –

अभिलेखों के न्यायालय के रूप में सर्वोच्च न्यायालय के पास दो शक्तियाँ हैं-

सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय, कार्यवाही और उसके फैसले सार्वकालिक अभिलेख एवं साक्ष्य के रूप में दर्ज़ किये जाते हैं तथा किसी अन्य अदालत में चल रहे मामलों के दौरान इन पर प्रश्न नहीं उठाया जा सकता।

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Disclaimer: इस आर्टिकल को कुछ अनुमानों और जानकारी के आधार पर बनाया है हम फाइनेंसियल एडवाइजर नही है आप इस आर्टिकल को पढ़कर शेयर बाज़ार (Stock Market), म्यूच्यूअल फण्ड (Mutual Fund), क्रिप्टोकरेंसी (Cryptocurrency) निवेश करते है तो आपके प्रॉफिट (Profit) और लोस (Loss) के हम जिम्मेदार नही है इसलिए अपनी समझ से निवेश करे और निवेश करने से पहले फाइनेंसियल एडवाइजर की सलाह जरुर ले

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