सवाई माधोपुर जिला दर्शन के बारे में विस्तृत जानकारी
सवाई माधोपुर जिला
सवाई माधोपुर जिला दर्शन के बारे में विस्तृत जानकारी निम्नलिखित है
सवाई माधोपुर को ”बाघों की स्थली” या ”बाघों की शरणस्थली” के नाम से जाना जाता है।
में
त्रिनेत्र गणेश मंदिर,रणथम्भौर :- इसे रणत भंवर गजानन्द तथा लेटे हुए गणेश जी भी कहते हैं। यहाँ पर देश का सबसे प्राचीन गणेश मेला भाद्रपद शुक्ल चतुर्थी को भरता है। यहाँ पर त्रिनेत्री गणपति की प्रतिमा में गर्दन, हाथ व शरीर नहीं है। केवल मुख की पूजा होती है। यह विश्व का एकमात्र ऐसा गणेश मंदिर है जहाँ केवल मुख की पूजा होती है। यहां पर विवाह के मौके पर प्रथम निमन्त्रण गणेश को भेजने की परम्परा है।
रणथम्भौर दुर्ग(गिरि/वन दुर्ग)
— उपनाम -चित्तौड़ दुर्ग का छोटा भाई, दुर्गाधिराज तथा बख्तर बंद। यह दुर्ग 7 पहाडिय़ों के बीच अण्डाकार आकृति में है।
अबुल फजल का कथन—”अन्य सब दुर्ग नंगे है जबकि यह दुर्ग बख्तर बंद हैं।”
निर्माण- 994 ई. में रंथम्मन देव के द्वारा।
अलाउद्दीन खिलजी के चाचा जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया लेकिन असफल रहा और निराश जलालुद्दीन खिलजी ने कहा ”मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक बाल बराबर भी नहीं समझता हूँ।”
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान—
स्थापना—1955, वन्य जीव अभयारण के रूप में की गई थी। वर्ष 1973-74 में यहाँ बाघ परियोजना की शुरुआत की गई। 1 नवम्बर 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। देश की सबसे कम क्षेत्रफल की बाघ परियोजना। यह अभयारण्य लगभग चार सौ वर्ग किलोमीटर में फैला-पसरा है। यहाँ का काला गरूड़ पक्षी प्रसिद्ध है। क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय प्रस्तावित। 28 जून, 2008 को रणथम्भौर अभयारण से दो प्रसिद्ध बाघ सुल्तान व बाघिन बबली का विस्थापन सरिस्का उद्यान में किया गया।
रणथम्भौर राष्ट्रीय—उद्यान में बाघों की गणना के लिए सुनिता नारायण की अध्यक्षता में ”टास्क फोर्स” का गठन किया एवम् इसके लिए पगमार्क विधि, डी.एन.ए. तकनीक एवम् केमरा ट्रैप तकनीक का प्रयोग किया है।
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में 1960 में इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजा बेथ, 1985 में राजीव गाँधी, 2000 में बिल क्लिंटन (अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति) 2005, में मनमोहन सिंह ने भ्रमण किया
इस उद्यान में बाघिन मछली थी जो सम्पूर्ण भारत में सबसे वृद्ध होकर देहान्त हुआ था। मछली को झालरा वाली बाघिन के नाम से भी जाना जाता था। इस पर राज्य सरकार ने डाक टिकट भी जारी किया था। इसके चहरे पर बने मछली जैसे निशान के कारण ही इस का नाम मछली रखा गया था. साथ ही इस बाघिन को टाइगर क्विन, लेडी ऑफ लेक व क्रोक्रोडाईल किलर के नाम से भी जाना जाता था। मछली नामक यह बाघिन रणथम्भौर आने वाले पर्यटकों में सबसे अधिक चर्चित थी। रणथम्भौर की इस महारानी का रणथम्भौर व सरिस्का को आबाद करने में बहुत ही महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
सवाई माधोपुर के ऐतिहासिक एवं दर्शनीय स्थल—
रणथम्भौर दुर्ग—इसके उपनाम-चित्तौड़ दुर्ग का छोटा भाई, दुर्गाधिराज तथा बख्तर बंद। यह दुर्ग 7 पहाडिय़ों के बीच अण्डाकार आकृति में है।
अबुल फजल का कथन—”और सभी दुर्ग नंगे है केवल यही दुर्ग बख्तयार बंद हैं।” इसका निर्माण 8वीं सदी में ठाकुर रति देव ने करवाया।
जलालुद्दीन खिलजी ने इस दुर्ग पर दो बार आक्रमण किया लेकिन असफल रहा और निराश जलालुद्दीन ने कहा ”मैं ऐसे 10 दुर्गों को मुसलमान के एक बाल बराबर भी नहीं समझता हूँ।”
रणथम्भौर दुर्ग का साका—
यह साका सन 1301 ई. में अलाउद्दीन खिलजी व हम्मीर के मध्य युद्ध हुआ जिसमें हम्मीर के सेनापति रणमल व रतिपाल ने हम्मीर के साथ विश्वासघात किया और दुर्ग के गुप्त द्वार खिलजी को बता दिये। हम्मीर ने केसरिया किया एवम् उसकी रानी रंग देवी ने जोहर किया। कहा जाता है कि हम्मीर की पुत्री देवलदे ने एक दिन पहले पहले ही पद्मला तालाब में कूदकर जलजौहर किया। यह राजस्थान का एकमात्र जलजौहर था।
यह साका राजस्थान का प्रथम जौहर व साका कहलाता है। अमीर खुसरो ने कहा कि ”आज कुफ्र का गढ़ इस्लाम का घर हो गया।”
रणथम्भोर दुर्ग के दर्शनीय स्थल—
इस दुर्ग का दरवाजा, मुख्य प्रवेश द्वार-नौलखा दरवाजा है, जिसका जीर्णोद्धार जयपुर के जगतसिंह ने करवाया।
जोगीमहल—सन 1961 ई. में वन विभाग ने इसका पुनर्निर्माण करवाया। वर्तमान में यह पर्यटकों का विश्रामगृह है।
अधूरा स्वप्न या अधूरी छतरी—इसका छतरी का कार्य हाड़ी रानी कर्मावती ने शुरू करवाया।
जैतसिंह की छतरी या न्याय की छतरी—राणा हम्मीर ने अपने पिता की याद में लाल पत्थरों से 32 खम्भों की छतरी निर्मित करवाई। जिस छतरी पर राणा हम्मीर बैठकर न्याय करता था इसलिए इसे न्याय की छतरी कहते हैं। इस छतरी में भूरे पत्थरों का शिवलिंग भी बना हुआ है।
जौरा-भौंरा महल, रणिहाड़ तालाब, रणत्या डूंगरी, पदमला तालाब, हम्मीर महल, हम्मीर कचहरी, पीरसदरुद्दीन की दरगाह, लक्ष्मीनारायण मंदिर, पीर सदरूद्दीन की दरगाह सुपारी महल, प्रसिद्ध गणेश जी का मंदिर आदि सभी दर्शनीय स्थल रणथम्भौर दुर्ग में हैं।
खण्डार दूर्ग—
उपनाम- रणथम्भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्भौर का पृष्ठ रक्षक। इस दुर्ग में प्राचीन जैन मन्दिर हैं, जिसमें महावीर स्वामी की ‘पद्मासन मुद्रा’ में तथा पार्श्वनाथ की आद्मकद मूर्ति है। अष्टधातु शारदा तोप इसी दुर्ग में है।
झाईन दुर्ग—सवाई माधोपुर में स्थित यह दुर्ग भी रणथम्भौर का सहायक दुर्ग या रणथम्भौर दुर्ग की कुंजी कहलाता है। अलाउद्दीन खिलजी ने रणथम्भौर दुर्ग से पहले इसी दुर्ग पर विजय हासिल की थी।
रामेश्वरम घाट—
खंडार तहसील में चंबल, बनास व सीप नदियों के संगम स्थल पर रामेश्वरम् का प्राचीन मंदिर है, जहाँ कार्तिक पूर्णिमा को मेला भरता है।
रणथंभोर वन्यजीव अभयारण्य- इसकी
स्थापना- सन्1955 ई, वन्य जीव अभयारण के रूप में की गई थी। वर्ष 1973-74 में यहाँ बाघ परियोजना की शुरुआत की गई। 1 नवम्बर 1980 को इसे राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया। देश की सबसे कम क्षेत्रफल की बाघ परियोजना। यह अभयारण्य लगभग चार सौ वर्ग किलोमीटर में फैला-पसरा है। यहाँ का काला गरूड़ पक्षी प्रसिद्ध है। क्षेत्रीय प्राकृतिक विज्ञान संग्रहालय प्रस्तावित। 28 जून, 2008 को रणथम्भौर अभयारण से दो प्रसिद्ध बाघ सुल्तान व बाघिन बबली का विस्थापन सरिस्का उद्यान में किया गया।
रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान में 1960 में इंग्लैण्ड की महारानी ऐलिजा बेथ, 1985 में राजीव गाँधी, 2000 में बिल क्लिंटन (अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति) 2005, में मनमोहन सिंह ने भ्रमण किया।
राजस्थान में सर्वाधिक बीहड़ भूमि का विस्तार सवाई माधोपुर जिले में है।
संगमरमर की मूर्तियों के लिए प्रसिद्ध स्थान-बासटोरड़ा(सवाई माधोपुर) है। (ध्यातव्य हैं कि संगमरमर की सर्वाधिक मूर्तियां जयपुर में बनाई जाती है।)
सवाई माधोपुर के लकड़ी के खिलौने प्रसिद्ध है।
एक खम्भे की छतरी—सवाई माधोपुर में है।
अमरुद की मण्डी सवाईमाधोपुर में लगती है। सवाई माधोपुर का अमरूद सम्पूर्ण भारत में प्रसिद्ध है।
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